शनिवार, 21 अगस्त 2010

ब्‍लॉग-चर्चा : कस्‍बे में बसे रवीश कुमार

ब्‍लॉग-चर्चा में इस बार रवीश कुमार का ब्‍लॉग - 'कस्‍बा'



मनीषा पांडेय

Ravish Kumar
PR
ब्‍लॉग चर्चा का सफर जारी है और इस सफर में हमारे साथ नए-नए हमराह जुड़ते जा रहे हैं। इस बार हमारी यह यात्रा जाकर रुकी है, रवीश के कस्‍बे में। कस्‍बे में कुछ देर रुके, ठहरें, कस्‍बे की बसाहट का जायजा लें, उस पर कुछ बतियाएँ और फिर आगे बढ़ें, अगले पड़ाव की ओर। सो इस बार - रवीश कुमार का ‘कस्‍ब

रवीश एन.डी.टी.वी. इंडिया के जाने-माने रिपोर्टर हैं और अपनी खास तरह की बेबाक और सधी हुई रिपोर्टों के लिए जाने जाते हैं। अभी हाल ही में उन्‍हें बेहतरीन रिपोर्टिंग के लिए प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका अवॉर्ड से सम्‍मानित किया गया है। रवीश ने जब कस्‍बा नाम से अपना ब्‍लॉग शुरू किया तो उनकी रिपोर्टों के प्रशंसकों को कुछ अच्‍छा पढ़ने का एक और माध्‍यम मिल गया।

आते ही रवीश ने शहरों और कस्‍बों के रोमांस पर एक बहस छेड़ दी :

‘कस्‍बे ठगे गये बेवकूफ किस्म की जगह से ज़्यादा नहीं। इसीलिए बड़े शहर के लोग कस्बों के लोगों को बेवकूफ समझते हैं। उन्हें एक तरह से सेकेंड हैंड माल का थर्ड हैंड उपभोक्ता समझते हैं। साहित्य न होता तो कस्बों की बात ही नहीं होती। मगर समस्या वही कि इतना रोमांटिक कर दिया गया कि कस्बे तमाम तरह की बुराइयों से दूर स्वर्ग जाने के रास्ते में हाल्ट की तरह लगते हैं


ब्‍लॉग चर्चा का सफर जारी है और इस सफर में हमारे साथ नए-नए हमराह जुड़ते जा रहे हैं। इस बार हमारी यह यात्रा जाकर रुकी है, रवीश के कस्‍बे में। कस्‍बे में कुछ देर रुके, ठहरें, कस्‍बे की बसाहट का जायजा लें, उस पर कुछ बतियाएँ और फिर आगे बढ़ें.....

यह एक खास किस्‍म की बेबाकी से बहुत सपाट, लेकिन उतने ही मारक तरीके से अपनी बात कहने की शुरुआत थी। फिर रवीश पर ब्‍लॉगमुग्‍धता का भी बुखार चढ़ा

खैर, रवीश को ब्‍लॉग शुरू किए अभी ज्‍यादा वक्‍त नहीं गुजरा है। वे अब लगभग डेढ़ सौ पोस्‍ट लिख चुके हैं और हर पोस्‍ट उनकी उसी बेबाकी और स्‍पष्‍टवादिता का बेहतरीन उदाहरण है। रवीश चाहे प्रेमचंद पर संस्‍मरण लिखें, लिज हर्ले की शादी में न बुलाए जाने का दुख प्रकट करें या शकीरा की कमर को उत्‍तरायण से दक्षिणायन होते देखें, हर जगह वह पैनी नजर काम कर रही होती है, जो ऊपरी सतह पर दिखती चीजों को कुरेदकर भीतर से कुछ और निकाल लाती है, और बहुत विश्‍वसनीय और तार्किक ढंग से उसे आपके सामने पेश करती है

चुनावी रिपोर्टिंग के दौरान लिखी गई पोस्‍टें भी बहुत बेहतरीन हैं। कस्‍बे की लोकप्रियता का अंदाजा इस पर आने वाली प्रतिक्रियाओं से ही लगाया जा सकता है। कस्‍बे में फ्रिज पर लिखे गए संस्‍मरण - ‘फ्रिज अनंत फ्रिज कथा अनंत’ काफी रोचक था। खुद रवीश की भी पसंदीदा पोस्‍ट फ्रिज-कथा ही है। वे लिखते हैं -
एक दिन एक ऐसे रिश्तेदार का आना हुआ, जिनके पास कई साल से फ्रिज़ था। उन्होंने फ्रिज़ खोल दिया। उसमें सिर्फ बोतल भरी थी। बर्तन-कटोरे में पानी था। वो हँसने लगे। बोले, आप लोगों को फ्रिज़ में क्या रखा जाता है, यही नहीं मालूम। उन्हें हम पर हँसने की आदत थी। सो बुरा लगा। फ्रिज़ का नहीं होना एक सामाजिक-आर्थिक अंतर था, मगर फ्रिज़ में किसी चीज़ का नहीं होना अलग सामाजिक आर्थिक अंतर। फ्रिज के खालीपन ने हमारी हैसियत एक बार फिर तय कर दी। या गिरा दी। हम सब आहत थे। ताजा खाना खाने वाले हम सब फ्रिज़ की गोद भऱने के लिए कुछ-कुछ बचाने लगे

हिंदी ब्‍लॉगों की दुनिया का निरंतर विस्‍तार हो रहा है। नए-नए लोग जुड़ रहे हैं और बहुत कुछ लिखा जा रहा है। रवीश इन सबको लेकर काफी उत्‍साहित हैं। उनका मानना है कि आधुनिक तकनीक ने हमें एक बहुत शानदार माध्‍यम प्रदान किया है, और इसका इस्‍तेमाल बड़े पैमाने पर लोगों तक अपनी बात पहुँचाने और कुछ सार्थक बहसों और विमर्शों का सूत्रपात करने के लिए किया जाना चाहिए।

रवीश कहते हैं कि ब्‍लॉग में आपके ऊपर कोई सेंसरशिप नहीं होती, कोई आपके लिखे में काट-छाँट नहीं करता। आप खुद ही अपने मालिक हैं, अपने संपादक हैं। आपको कोई आदेशित करने वाला नहीं कि ये करो, वो न करो। किसी की जी-हुजूरी की जरूरत नहीं। इस स्‍पेस में आप बिल्‍कुल आजाद हैं, अपने तरीके से जीने के लिए।

हिंदी ब्‍लॉगों की दुनिया का निरंतर विस्‍तार हो रहा है। नए-नए लोग जुड़ रहे हैं और बहुत कुछ लिखा जा रहा है। रवीश इन सबको लेकर काफी उत्‍साहित हैं। उनका मानना है कि आधुनिक तकनीक ने हमें एक बहुत शानदार माध्‍यम प्रदान किया है।



ब्‍लॉगिंग को लेकर रवीश का जोश देखते बनता है। उनका मानना है ब्‍लॉगिंग के माध्‍यम से हिंदी भाषा का विस्‍तार होगा और हिंदी में नए अच्‍छे लेखक भी पैदा होंगे। प्रिंट मीडिया में अब नए लेखकों को पैदा करने की ताकत नहीं बची है, लेकिन ब्‍लॉग उस अभाव को पूरा करेंगे। यहाँ तक की ब्‍लॉग साहित्यिक पत्रिकाओं का भी स्‍थान ले सकते हैं। रवीश हिंदी ब्‍लॉगिंग को लेकर काफी आशान्वित हैं, हालाँकि उसके खतरों पर भी निगाह रखते हैं

मोहल्‍ला, अजदक और अनामदास का पोथा रवीश के पसंदीदा ब्‍लॉग हैं। रवीश कहते हैं कि अभी तक हिंदी ब्‍लॉगिंग में अधिकांश निजी और संस्‍मरणात्‍मक चीजें ही लिखी जाती रही हैं, जबकि ऐकेडमिक बातों को भी यहाँ स्‍पेस मिलना चाहिए। इतिहास के गंभीर विषयों पर उम्‍दा लेखकीय सामग्री, तथ्‍य, विचार और घटनाएँ ब्‍लॉग में आने चाहिए। इससे ब्‍लॉग की व्‍यापक सामाजिक उपयोगिता बढ़ेगी और ज्ञान की उपलब्‍धता भी।

‘कस्‍ब’ के माध्‍यम से रवीश का सफर जारी है। एक ऐसा सफर, जिसने हिंदी ब्‍लॉगिंग को एक दिशा और सार्थकता प्रदान की है। ढेरों लोग इस सफर के सा‍थी हैं। कस्‍बे की बसाहट और चमक-दमक बढ़े, लोगों की आवाजाही बढ़े, ऐसी उम्‍मीद की जानी चाहिए।


ब्‍लॉग - कस्‍ब
URL - http://naisadak.blogspot.com/

गुरुवार, 19 अगस्त 2010

ग्लोबल होता राजस्थानी साफा

ग्लोबल होता राजस्थानी साफा

पगड़ी का इस्तेमाल हमारे देश में सदियों से होता आया है | प्राचीन काल से ही हमारे यहाँ पगड़ी को व्यक्तित्व,आन,बान,शान और हैसियत का प्रतीक माना जाता रहा है | पगड़ी हमारे देश में चाहे हिन्दू शासक रहें हों या मुस्लिम शासक सभी की प्रिय रही है | आज भी पगड़ी को इज्जत का परिचायक समझा जाता है | पगड़ी को किसी के आगे रख देना सर झुकाना व उसकी अधीनता समझना माना जाता है | महाराणा प्रताप ने वर्षों में जंगल में रहना पसंद किया पर अकबर के आगे अपनी पगड़ी न झुका कर मेवाड़ी पाग (पगड़ी )की हमेशा लाज रखी |
राजस्थान में हर वर्ग व जाति समुदाय अपनी अपनी शैली में सिर पर पगड़ी बांधते है ,राजपूत समुदाय में इसी पगड़ी को साफा कह कर पुकारा जाता है ,राजपूत समाज में साफों के अलग-अलग रंगों व बाँधने की अलग-अलग शैली का इस्तेमाल समय समय के अनुसार होता है जैसे - युद्ध के समय राजपूत सैनिक केसरिया साफा पहनते थे अत: केसरिया रंग का साफा युद्ध और शौर्य का प्रतीक बना | आम दिनों में राजपूत बुजुर्ग खाकी रंग का गोल साफा सिर पर बांधते थे तो विभिन्न समारोहों में पचरंगा,चुन्दडी,लहरिया आदि रंग बिरंगे साफों का उपयोग होता था | सफ़ेद रंग का साफा शोक का पर्याय माना जाता है इसलिए राजपूत समाज में सिर्फ शोकग्रस्त व्यक्ति ही सफ़ेद साफा पहनता है |
लेकिन पिछले कुछ सालों में आधुनिकता की दौड़ में राजस्थान की युवा पीढ़ी अपनी इस परम्परा से विमुख होती गयी और वो साफा बंधना भी भूल गयी पर धीरे धीरे वर्तमान पीढ़ी को अपनी गलती महसूस हुई पर जब तक बहुत देर हो चुकी थी गांवों में तो फिर कुछ लोग थे जिन्हें परम्परागत साफा बांधना आता था पर शहरों में तो शादी ब्याह के अवसर पर भी साफा बाँधने वालों को तलाश करना पड़ता था | इसी कमी को पूरा करने के लिए शहरों में साफा बाँधने वालों की मांग ने इसे व्यवसायिक बना दिया और इस व्यवसाय को सही दिशा दी जोधपुर के शेर सिंह राठौड़ ने |
शेर सिंह राठौड़ में राजस्थान की हर शैली में बंधे बंधाये साफे उपलब्ध कराने शुरू किये तो राजस्थान की वर्तमान पीढ़ी खास कर राजपूत समुदाय के युवाओं ने इसे हाथों हाथ लिया | राजपूत युवाओं के प्रेरणा श्रोत उच्च शिक्षित व बाड़मेर के पूर्व सांसद स्व.तन सिंह जी हमेशा खाकी साफा पहनते थे सार्वजानिक जीवन में खाकी साफा पहनने उनकी उस विरासत को पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व.कल्याण सिंह जी कालवी ने व उनके पुत्र करणी सेना के प्रधान व कांग्रेस नेता श्री लोकेन्द्र सिंह ने बरक़रार रखी |
आज शेर सिंह राठौड़ के प्रयासों से राजस्थानी साफे ने सिर्फ राजस्थान में ही अपना खोया गौरव प्राप्त नहीं किया बल्कि विदेशों में भी लोकप्रियता हासिल कर ग्लोबल होने की राह पर अग्रसर है |
आईये अब मिलते है राजस्थानी साफों को ग्लोबल गौरव दिलाने वाले इस शख्स व उसके पुत्र से :
1जनवरी 1964 को जोधपुर जिले की बिलाडा तहसील के रूपनगर गांव में भंवर सिंह राठौड़ के घर जन्मे शेर सिंह राठौड़ जोधपुर रहकर सामाजिक गतिविधियों में सक्रीय रहते है ये सामाजिक गतिविधियाँ ही साफा बांधने में महारत हासिल करने की कारण बनी |
जोधपुर में शादी विवाहों में धनि लोग अच्छे पैसे खर्च कर साफे बंधवाते थे पर आम आदमी अपना ये शौक कैसे पूरा करे यही चिंता कर शेर सिंह राठौड़ ने संकल्प लिया कि वो आम आदमी के लिए बंधा-बंधाया साफा उपलब्ध कराएँगे और इसी जूनून के चलते उन्होंने साफों का व्यवसाय किया और वे सफल हुए आज उनके उनके द्वारा बांध कर बेचे गए गए शेर शाही साफों के नाम से प्रसिद्ध है |
आज शेर सिंह राठौड़ जोधपुर साफा हाउस के नाम से जोधपुर की पावटा रोड पर मानजी का हत्था के पास अपना साफा का व्यवसाय चालते है साथ ही साफों को राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के ब्लॉग जगतफेसबुक पर भी मौजूद है |साफों के बारे में किसी भी तरह की जानकारी के लिए उनसे इस पते पर संपर्क किया जा सकता है -
जोधपुरी साफा हाउस
24 ,मान जी का हथा,
पावटा `बी` रोड ,जोधपुर (राज.)
फ़ोन नंबर : 94142 -01191 / 9314712932
0291-2541187
Email : jodhpurisafahouse@gmail.com

बेशक राजस्थान में समाज की नई पीढ़ी कार्पोरेट व वेस्टर्न कल्चर में ढूब अपना परम्परागत साफा बांधना भूल गयी हो पर शेर सिंह का १८ वर्षीय पुत्र अजीतपाल सिंह एक घंटे में बिना थके १०० से ज्यादा साफे बांध सकता है | एक साफा बाँधने में उसे मुस्किल से ३० से ४० सैकिंड लगते है और उसे विभिन शैलियों के १५ तरीकों के साफे बाँधने में महारत हासिल है |
अजीतपाल देश के बड़े-बड़े शादी समारोहों में साफा बाँधने के के लिए शामिल होने के साथ ही साफा बाँधने के लिए मारीशस,मलेशिया व सिंगापूर की यात्राएं भी कर चूका है | सिंगापूर के शादी समारोह में बारातियों के लिए उसने मात्र डेढ़ घंटे में १२५ साफे बाँध कर वहां उपस्थित सभी मेहमानों को आश्चर्यचकित कर दिया था |
१५ अलग-अलग शैलियों में साफा बाँधने वाले अजीतपाल को सबसे ज्यादा मजा मारवाड़ी शैली में साफा बांधने में आता है जिसे वह कुछ सैकिंड़ो में बांध देता है |